शेरघाटी, गया (बिहार): गया जिले के शेरघाटी अनुमंडल में इस वर्ष मोहर्रम का मातमी जुलूस 6 और 7 जुलाई को बड़े ही श्रद्धा, अनुशासन और सौहार्दपूर्ण माहौल में निकाला जाएगा। हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाने वाला यह पर्व इस क्षेत्र में न सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि हिन्दू-मुस्लिम एकता और गंगा-जमुनी तहज़ीब की एक जीवंत मिसाल भी है।

हर साल की तरह इस बार भी शेरघाटी में कई अखाड़ों और मुहर्रम कमेटियों के नेतृत्व में ताजिया, अखाड़ा प्रदर्शन और मातमी जुलूस निकाले जाएंगे। शेरघाटी शहर और आसपास के गांवों से हजारों की संख्या में अकीदतमंद लोग इन जुलूसों में शरीक होकर करबला की कुर्बानी की यादें ताज़ा करेंगे।

मोहर्रम का महत्व – सब्र और इंसाफ की राह

मोहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होता है और इस महीने की 10वीं तारीख, जिसे ‘आशूरा’ कहा जाता है, इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की करबला में दी गई शहादत की याद में मनाई जाती है। यह पर्व हमें अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने, सच्चाई पर अडिग रहने और धर्म व मानवता की रक्षा हेतु बलिदान देने की प्रेरणा देता है।

मोहर्रम का जुलूस कोई उत्सव नहीं, बल्कि यह शोक और श्रद्धा का प्रतीक होता है। ताजिया, सोज़ख़्वानी, नौहा और मातम के माध्यम से शहीदों को याद किया जाता है। इस मौके पर अकीदतमंद रोज़ा रखते हैं, मस्जिदों में दुआएं करते हैं और जरूरतमंदों की मदद कर पुण्य अर्जित करते हैं।

सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतज़ाम

शेरघाटी प्रशासन ने मोहर्रम के जुलूस को शांतिपूर्ण और सुरक्षित बनाने के लिए सख्त एवं व्यवस्थित तैयारियां की हैं। अनुमंडलाधिकारी (SDO) और अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी (SDPO) के नेतृत्व में कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जिला स्तर पर टीम गठित की गई है।

  1. संवेदनशील स्थानों पर अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती
  2. रूट पर CCTV और ड्रोन कैमरे से निगरानी
  3. हर ताजिया जुलूस के साथ मजिस्ट्रेट और पुलिस बल की प्रतिनियुक्ति
  4. अखाड़ों की गतिविधियों की वीडियोग्राफी
  5. अफवाहों पर नियंत्रण के लिए सोशल मीडिया निगरानी टीम
  6. फायर ब्रिगेड और मेडिकल टीम स्टैंडबाय

प्रशासन ने सभी अखाड़ों को निर्धारित मार्ग से ही जुलूस निकालने का निर्देश दिया है। किसी भी तरह की अनुशासनहीनता या अफवाह फैलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी गई है।

हिन्दू-मुस्लिम एकता: शेरघाटी की पहचान

शेरघाटी हमेशा से हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल रहा है। मोहर्रम जैसे मौके पर भी यह सांप्रदायिक सौहार्द अपने चरम पर होता है। कई जगहों पर हिन्दू भाई भी मोहर्रम की तैयारियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। कोई ताजिया के निर्माण में मदद करता है, तो कोई रास्तों की सफाई, पानी पिलाने या लंगर सेवा में योगदान देता है।

कई मोहल्लों में हिन्दू समुदाय की महिलाएं मोहर्रम के जुलूस देखने के लिए अपने घरों के बाहर दीपक जलाकर श्रद्धा प्रकट करती हैं। यह दृश्य न सिर्फ सामाजिक सौहार्द का प्रतीक होता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि मजहब की दीवारें इंसानियत को नहीं बाँध सकतीं।

प्रशासन और आमजन की अपील

प्रशासन ने क्षेत्रवासियों से अपील की है कि वे किसी भी तरह की अफवाहों से बचें और अपने आस-पास शांति और सौहार्द बनाए रखें। सोशल मीडिया पर किसी भी आपत्तिजनक पोस्ट या अफवाह की तुरंत सूचना पुलिस को दें। यदि कोई व्यक्ति किसी तरह की शरारती गतिविधि करता हुआ दिखाई दे, तो उसकी सूचना नजदीकी थाना को दें।

सभी अखाड़ों के प्रमुखों और स्थानीय धर्मगुरुओं ने भी यह अपील की है कि लोग नियमों का पालन करें, अनुशासन बनाए रखें और मोहर्रम को शांति के साथ संपन्न कराएं।